नई दिल्ली :- सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा है कि डॉक्टरों को मरीजों के पर्चे पर जेनेरिक दवाएं लिखने को अनिवार्य बनाने की जरूरत है. एक संस्था ने दावा किया था कि डॉक्टर महंगी ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं, ताकि कंपनियों से उनको कमीशन मिल सके. इसी मामले की सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि अगर देशभर में डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाएं लिखना अनिवार्य हो जाए तो यह समस्या हल हो सकती है, हालांकि इस बाबत फिलहाल कोई आदेश जारी नहीं किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं में क्या अंतर होता है. इनके दाम में कितना फर्क हैं और क्या इन दवाओं से शरीर को ऐसा जैसा ही फायदा मिलता है? इन सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से जानेंगे, लेकिन उससे पहले ये बता देते हैं कि जेनेरिक और ब्रांडेड दवाएं होती क्या हैं..?

कोई भी दवा सॉल्ट यानी केमिकल कंपोजिशन से बनती है. इसी सॉल्ट को कैप्सूल या दवा के रूप में तैयार किया जाता है. यही बीमारी पर काम करता है. जब दवा के सॉल्ट को कंपनी अपने ब्रांड के नाम से बाजार में बेचती हैं तो ये ब्रांडेड दवा कहलाती है, जिन दवाओं को बिना ब्रांड या या हल्के ब्रांड के साथ बेचा जाता है वह जेनेरिक होती है. जेनेरिक दवाओं की पैकेजिंग और लैबलिंग ब्रांडेड दवाओं की तुलना में हल्की होती हैं. लेकिन जेनेरिक दवाओं में ब्रांडेड जैसा ही सॉल्ट होता है.
क्या जेनरिक दवाओं का असर कम होता है :-
दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में मेडिसिन विभाग के डॉ. अजित कुमार बताते हैं कि दवा ब्रांडेड हो या जेनेरिक अगर उनमें सॉल्ट एक जैसा है तो उनका असर में कोई अंतर नहीं होगा. क्योंकि दवा का सॉल्ट काम करता है. इस बात से कम फर्क पड़ता है कि वह किस ब्रांड की है. अधिकतर दवाओं में जेनरिक दवाएं ब्रांडेड की तरह ही प्रभावी होती हैं. जेनेरिक दवाओं के कई फायदे भी हैं. यहब्रांडेड दवाओं की तुलना में कम महंगी होती हैं.
जेनरिक दवाएं भी फार्मेसियों और दवा की दुकानों पर उपलब्ध होती हैं. जेनेरिक दवाओं को आप आसानी से खरीद सकते हैं. किसी भी बीमारी को जो ब्रांडेड दवा खा रहे हैं उनके सॉल्ट के नाम की जेनेरिक दवा भी होती हैं. ऐसे में आर उनको सेवन कर सकते हैं, लेकिन इस मामले में अपने डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है. बिना डॉक्टर की सलाह के खुद से ये दवाएं खाना न शुरू करें.
डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं ज्यादा क्यों लिखते हैं?
दिल्ली में वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. कमलजीत सिंह बताते हैं कि फार्मास्युटिकल कंपनियां ब्रांडेड दवाओं का अधिक प्रचार करती हैं और डॉक्टरों को इनके बारे में अधिक जानकारी प्रदान करती हैं. डॉक्टरों को भी ब्रांडेड दवाओं का ज्यादा पता होता है और वह मरीजों को यही दवाएं लिख देते हैं. कई मामलों में मरीज ब्रांडेड दवाएं लिखने को भी कहते हैं. कुछ मरीजों को लगता है कि जेनेरिक दवाएं कम असर करती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. इनका असर एक जैसा ही है और जेनेरिक दवाएं काफी सस्ती भी होती हैं.
जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं के दामों में क्या है अंतर…?
- जेनेरिक में एंटी-सेप्टिक बीटाडीन पाउडर की कीमत 30 रुपये होगी, जबकि ब्रांडेड में इसका एमआरपी 81 रुपये है
 - हाइपरटेंशन की दवा टेल्मिसर्टन 40 मिलीग्राम जेनेरिक में 40 रुपये में मिलेगी, जबकि टॉप ब्रांड्स में इसकी एमआरपी 200 रुपये से ज़्यादा है.
 - मल्टीस्पेक्ट्रम स्किन ऑइंटमेंट क्वार्ड्रिडर्म और फोरडर्म में साल्ट की संरचना एक जैसी है . दोनों की एमआरपी लगभग 180 रुपये से ज़्यादा है. लेकिन जेनेरिक शॉप से फोरडर्म के सॉल्ट की दवा आप 40 रुपये में खरीद सकते हैं.
 - डायबिटीज की अंग्रेजी दवा मेटफॉर्मिन है और इसकी जेनेरिक दवा का नाम glimepiride है, जो मेटफॉर्मिन के एक पत्ते से करीब आधे रेट में आती है
 - कोलेस्ट्रॉल के लिए एटोरवास्टेटिन 10mg जेनरिक दवा की कीमत एक पत्ते की ₹23.67 है, जबकि ब्रांडेड दवा listril की कीमत ₹175.50 है, जो 86% महंगी है.
 - थाइराइड के लिए जेनेरिक दवा levothyroxine की कीमत 90 रूपये है, जबकि इंग्लिश दवा थाइरोनॉर्म 170 रूपये की है.
 
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