
रायपुर :- राजधानी सहित सफेद पोश नेताओ्ं से संरक्षण में वर्षों से छत्तीसगढ़ में रह रहे अवैध नागिरकों का अब बच पाना मुश्किल है। पुलिस बहुत सघन तरीके से कानूनी दस्तावोजों की जांच शुरू कर दी है। जिसके चलते अवैध पाकिस्तानियों को संरक्षण देने वाले नेता अंडरग्राउंड हो गए है। पुलिस की टीम पूरे प्रदेश में अवैध नागरिकों की पहचान की ताबड़तोड़ कार्रवाई कर अवैध नागिरकों को देश निकाला करने मे ंजुट गई है। छत्तीसगढ़ में अवैध नागरिकों की पड़ताल होने से अवैध नागरिकों में हड़कंप मचा हुआ है। पुलिस ने बिलासपुर ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए 300 अवैध नागरिकों की पहचान की है।
पकिस्तान-बांग्लादेश के कई ऐसे लोग है जो छत्तीसगढ़ में राजधानी के आसापास गांवों और कस्बों के साथ राजधानी सहित माना राजिम ,धमतरी , भाटापारा , तिल्दा-नेवरा, मुंगेली बेमेतरा, बीरगांव, पखांजूर, अंतागढ़, संतोषी नगर, बिलाईगढ़, बिलासपुर जैसे कई शहरों में अवैध रूप से निवास कर रहे है। कांग्रेस शासनकाल के दौरान छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्रों में बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिकों के अवैध रूप से बसने के गंभीर आरोप सामने आए हैं। पखांजूर, अंतागढ़, गीदम, जगदलपुर, बीजापुर, भाटापारा, तिल्दा-नेवरा, बीरगांव, भनपुरी, भिलाई, दुर्ग, सरायपाली, बसना और धमतरी जैसे इलाकों में लाखों की संख्या में अवैध रूप से विदेशी नागरिकों के बसने की बात कही जा रही है। आरोप है कि स्थानीय छुटभैये नेताओं और कथित तौर पर ‘नाड़ा-पायजामा’ गिरोह से जुड़े लोगों ने बड़े पैमाने पर इन विदेशी नागरिकों को न सिर्फ बसाया, बल्कि फर्जी दस्तावेज तैयार कराने में भी मदद की। अवैध रूप से रह रहे इन नागरिकों के लिए आधार कार्ड, मतदाता परिचय पत्र और अन्य सरकारी पहचान पत्र बनवाने के लिए भारी मात्रा में पैसे खर्च किए गए।
केंद्र सरकार के आदेश पर सख्त कदम :-
अवैध पाकिस्तानी नागरिकों की पहचान करने के केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के बाद पुलिस के एक्शन से राजधानी में रह रहे अवैध पाकिस्तानी नागरिकों में खलबली मची हुई है। पुलिस की टीम लगातार मोहल्लों में जाकर अवैध रूप से रह रहे पाकिस्तानियों को ढूंढ-ढूंढ कर देश से बाहर कर उनको वापस पाकिस्तान भेज रही है। पिछले चार दिनों में केंद्र सरकार के आदेश पर सख्ती से कदम उठाते हुए 50-60 अवैध नागरिकों को वापस भेज चुकी है। सत्ता और प्रशासन से जुड़े जानकारों का तो यहां तक कहना है कि कांग्रेस सरकार के दौरान वोट बैंक बढ़ाने के फेर में कांग्रेसियों ने जमकर अवैध पाकिस्तानी नागरिकों की मदद कर उन्हें छत्तीसगढ़ की वोटर आई-डी, राशन कार्ड, आधार कार्ड बनवाने के साथ प्रापर्टी खरीदने में भी मदद किया। कांग्रेस सरकार में अवैध नागरिकों की वैध दस्तावेजों की कभी जांच ही नहीं हुई । तत्कालीन सरकार में छुटभैया नेताओं ने अपने-अपने आकाओ को खुश करने के लिए वोट बैंक मिशन चलाया जिसमें अवैध पकिस्तानी नागरिकों को जमीन, मकान दिलाने में मदद की दलाली करते रहे।
पाकिस्तान-बांग्लादेश से आने वाले का कोई ठोस रिकार्ड नहीं :-
छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के बाद से राजधानी सहित प्रदेश के कई हिस्सों में पाकिस्तानी-बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या लगातार बढ़ती गई। पुलिस के पास अवैध रूप से रह रहे नागिरकों का कोई दस्तावेजी रिकार्ड नहीं है। अब उनके ही दस्तावेजों की जांच कर पिकार्ड बनाने में जुट गई है.। पाकिस्तान-बांग्लादेश से आने वाले कई जत्थों के सदस्य वापस नहीं लौटते और यहीं बस जाते हैं। इस संदर्भ में शासन और प्रशासन के पास कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, और इंटेलिजेंस विभाग भी इन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं करता।
शासन और प्रशासन के पास कोई ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं :-
जानकार सूत्रों के अनुसार कई धार्मिक संस्था के आयोजनों के लिए पाकिस्तान-बांग्लादेश से आने वाले कई जत्थों के सदस्य वापस नहीं लौटते और यहीं बस जाते हैं। इस संदर्भ में शासन और प्रशासन के पास कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, और इंटेलिजेंस विभाग भी इन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं करता। विशेष रूप से वर्ष 2018 से 2023 के दौरान कई पाकिस्तानी-बांग्लादेशी नागरिकों ने फर्जी आधार कार्ड, पासपोर्ट, वीजा और पैन कार्ड तैयार कर छत्तीसगढ़ में अवैध रूप से रहना शुरू कर दिया था।
आरोप है कि तत्कालीन कांग्रेस की सरकार के समय में कई बड़े दलालों की मदद से इन पाकिस्तानी-बांग्लादेशी नागरिकों को रायपुर जैसे शहरों में पनाह दिलाई गई। सूत्रों से जानकारी मिली है कि कई ऐसे बड़े बिल्डर, सट्टेबाज, और खाईवाल पाकिस्तानी है। सूत्रों के अनुसार, राजधानी में कई पाकिस्तानी-बांग्लादेशी शरणार्थी अब सरकारी दस्तावेज जैसे मूलनिवासी प्रमाणपत्र, परिचय पत्र और वोटर आईडी कार्ड भी बनवा चुके हैं।
प्रॉपर्टी खरीदकर व्यवसाय स्थापित हो चुके वे यहां न केवल स्थायी रूप से बस गए हैं, बल्कि प्रॉपर्टी खरीदने और व्यवसाय स्थापित करने जैसे काम भी कर रहे हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इस विषय में शासन-प्रशासन की भूमिका और निगरानी पर भी सवाल उठने लगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जल्द कोई सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह भविष्य में बड़ी सुरक्षा चुनौती बन सकती है।
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