नई दिल्ली :- Zerodha के को-फाउंडर निखिल कामत ने हाल ही में एक ऐसी बात कही है जिससे लगता है कि आने वाले समय में कैश, सोना, चांदी, कीमती आभूषण या जमीन कुछ उतना वैल्यूएबल नहीं रहेगा जितनी ये चीज हो जाएगा. उनका मानना है कि आने वाले 10 सालों में इलेक्ट्रॉन और ऊर्जा (energy) हमारी करेंसी बन सकते हैं. कामत की यह सोच सिर्फ एक कल्पना नहीं, बल्कि तेजी से बढ़ते डेटा सेंटर्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बिजली खपत पर आधारित रिसर्च से जुड़ी है. डेटा सेंटर्स की बात करें तो ये वो जगहे हैं जहां आपकी हर ऑनलाइन गतिविधि—चाहे वो Netflix देखना हो या किसी फाइल को क्लाउड में सेव करना—प्रोसेस होती है. लेकिन हर एक नया डेटा सेंटर सालभर में जितनी बिजली खपत करता है, उतनी 4 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियां मिलकर भी नहीं करतीं. यही वजह है कि किसी भी डेटा सेंटर की कुल लागत का 65% हिस्सा केवल बिजली में खर्च होता है.
भारत का क्या स्थान है?
दुनिया में सबसे ज्यादा 3,680 डेटा सेंटर्स अमेरिका में हैं. इसके बाद जर्मनी (424) और यूके (418) आते हैं. भारत इस सूची में 7वें स्थान पर है, जहां 262 डेटा सेंटर्स हैं. जैसे-जैसे सर्वर की संख्या बढ़ती है, बिजली की मांग भी बढ़ती जाती है. यही वजह है कि रिसर्च का अनुमान है कि 2030 तक डेटा सेंटर्स दुनिया की कुल बिजली का 10% खपत करेंगे.

AI से बढ़ रही है बिजली की भूख
रिसर्च में कहा गया है कि अगर पूरी दुनिया की सिर्फ 5% इंटरनेट सर्च AI की मदद से हो, तो उससे जितनी बिजली लगेगी, वो 10 लाख भारतीय घरों को सालभर तक रोशन करने के लिए काफी होगी. यही बात AI की असली कीमत को उजागर करती है—जैसे OpenAI के सैम ऑल्टमैन ने कहा था कि “please” और “thank you” जैसे शब्द भी करोड़ों डॉलर खर्च करा देते हैं.
‘एनर्जी करेंसी’ का क्या मतलब है?
निखिल कामत के मुताबिक, अगर बिजली हर डिजिटल गतिविधि की रीढ़ बन चुकी है—तो क्यों न इसे करेंसी जैसा दर्जा दिया जाए? सोचिए, जब कंपनियां डॉलर या यूरो के उतार-चढ़ाव से बचने के लिए करेंसी हेजिंग करती हैं, वैसे ही वो आने वाले समय में बिजली की कीमतों को लेकर भी हेजिंग शुरू कर सकती हैं. यानी ऊर्जा भी एक ‘एसेट’ की तरह ट्रेड होगी. कल्पना कीजिए, अगर सुपरमार्केट या डेटा सेंटर्स किलोवॉट-ऑवर की ट्रेडिंग करें, जैसे आज विदेशी मुद्रा या बिटकॉइन की होती है! भविष्य में शायद ब्लॉकचेन आधारित ‘एनर्जी टोकन’ भी आ सकते हैं, जिससे ऊर्जा का आदान-प्रदान डिजिटल मुद्रा की तरह होगा.
क्या बदल जाएगी आर्थिक सोच?
अगर ऐसा होता है, तो देश की अर्थव्यवस्था में मौलिक बदलाव आ सकता है. महंगाई के मापदंड, बैंकिंग सिस्टम और यहां तक कि ‘मूल्य’ की परिभाषा को भी नए सिरे से समझना होगा. हो सकता है भविष्य में दौलत न सिर्फ पैसों से, बल्कि आपके पास मौजूद एनर्जी क्रेडिट्स से भी मापी जाए.
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