नई दिल्ली :- गंगाजल सालों तक खराब नहीं होने और बदबू नहीं आने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक कारण बताए जाते हैं.गंगाजल खराब नहीं होने की वजह करीब 135 साल पहले लगाई गई थी. 1890 के करीब भारत में पड़े अकाल में प्रयागराज (इलाहाबाद) में संगम तट के माघ मेले में हैजा भी फैला था. इतने लोग मरे कि लाशों को गंगा में भी बहाया गया. उस समय वैज्ञानिक और बैक्टीरियोलॉजिस्ट अर्नेस्ट हैन्किन गंगाजल पर रिसर्च कर रहे थे.
वैज्ञानिक ने पाया कि हैजे से मरने वाले लोगों की लाशों गंगा में बहाई जाने के बावजूद, जो लोग गंगाजल इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें कोई नुकसान नहीं हो रहा. अर्नेस्ट हैन्किन ने गंगाजल के सैंपल का विश्लेषण किया.

रिसर्च में वैज्ञानिक ने पाया गंगाजल में बहुत कम बैक्टीरियल प्रदूषण था. गंगाजल में हैजा के बैक्टीरिया को खत्म करने वाला पदार्थ पाया गया.नदी में फेंकी गए कचरे से पनपी जैविक सड़न को ‘एंटी-बैक्टीरियल’ पदार्थ साफ करता था.
रिसर्च में माना गया हैजा के बैक्टीरिया को नष्ट करने वाला निंजा वायरस गंगाजल को शुद्ध करता है इसमें। इसमें बैक्टीरियोफ़ेज नामक वायरस होता है, जो बैक्टीरिया को खत्म कर देता है. गंगाजल में इसके अलावा और भी कई वायरस पाये गए जो बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ते हैं. जिनके चलते गंगाजल में बदबू नहीं आती. गंगाजल में बैक्टीरिया को नष्ट करने वाले करीब 1000 तरह के ‘बैक्टीरियोफेज’ वायरस पाए जाते हैं.
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