आरएसएस-भाजपा :- लोकसभा चुनाव के समय से ही आरएसएस और बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक नहीं चलने के कयास लगाए जा रहे थे। इसके कारण ही संघ ने पिछवे दिनों हुए लोकसभा चुनाव-2024 में खुद को अलग कर लिया था। इसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी चुनाव में अपने दम पर बहुमत नहीं पा सकी और बैसाखी (एनडीए के घटक दलों) के सहारे सरकार बनाने के विवश हुई। अब खुद आरएसएस ने इसकी पुष्टि कर दी है। 1-2 सितंबर को केरल में हुई बैठक में संघ ने माना कि बीजेपी और उसके बीच कुछ समस्याएं हैं, लेकिन उसने उन्हें ‘पारिवारिक मामला’ बताया। साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा कि विवाद की जो भी वजहें हैं, उन्हें बैठकर सुलझा लिया जाएगा। बता दें कि आरएसएस और बीजेपी का नाता काफी पुराना हैं। बीजेपी के अधिकतर कद्दावर नेता संघ से ही निकले हैं। दोनों की विचारधारा लगभग एक समान ही है। बीजेपी के हर फैसले में संघ का असर अबतक दिखता आय़ा है। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले से बीजेपी-आरएसएस में टकराव देखने को मिल रहा है।
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि आरएसएस के 100 साल पूरे हो रहे हैं। यह एक लंबी यात्रा है। आंबेकर ने इस बात का भी संकेत दिया कि बैठक में समन्वय के मुद्दों और हाल के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान के बाद आरएसएस कैडर के उत्साह में हुई कमी को लेकर भी चर्चा की गई। जेपी नड्डा ने लोकसभा चुनाव के दौरान कहा था कि बीजेपी अब ‘आत्मनिर्भर’ हो चुकी है और उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं है।

जेपी नड्डा के इस बयान को लेकर काफी ज्यादा घमासान मच गया था। आंबेकर ने कहा, “अन्य मुद्दों को भी सुलझा लिया जाएगा। ये पारिवारिक मामला है. तीन दिवसीय बैठक हुई है और सभी ने भाग लिया है। सब कुछ ठीक चल रहा है। आरएसएस-बीजेपी मतभेद पर सवाल उठाते हुए आंबेकर ने एक बार भी दोनों संगठनों के बीच कथित समन्वय की कमी से इनकार नहीं किया। यह पहली बार है कि संघ ने खुले तौर पर स्वीकार किया है कि दोनों संगठनों के बीच कुछ खटपट है।
बीजेपी और आरएसएस दोनों का टारगेट एक ही :-
आरएसएस नेता ने कहा कि जहां तक लक्ष्यों का सवाल है, बीजेपी और आरएसएस दोनों का टारगेट एक ही है।लंबी यात्राओं में एक बात हमेशा सुनिश्चित होती है, आरएसएस का अर्थ है राष्ट्र सर्वोपरी। हर एक स्वयंसेवक मानता है कि राष्ट्र सनातन है, शाश्वत है। भविष्य में इसके बढ़ने की संभावना है। इसलिए, हम सभी देश की सेवा के लिए समर्पित हैं. यह आरएसएस का मूल आधार है और बाकी चीजें महज कार्यात्मक मुद्दे हैं। हर संगठन इस पर विश्वास करता है और इसका अभ्यास करता है।
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